कुछ निवेशक म्यूचुअल फंड्स में इसलिए निवेश करते हैं क्योंकि वे लंबी अवधि में पैसे बनाना चाहते हैं। वे अपने करियर की शुरुआत में ही निवेश करना शुरू कर देते हैं। फिर ऐसे निवेशक होते हैं जो रिटायरमेंट (सेवानिवृत्ति) के करीब होते हैं या जिनके पास निवेश करने के लिए रिटायरमेंट की रकम होती है जो सेवानिवृत्ति के दौरान उनकी आय के स्रोतों की पूरक हो सकती है। इन दोनों विपरीत निवेश-संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए म्यूचुअल फंड्स दो विकल्प पेश करते हैं।
ग्रोथ ऑप्शन भावी विकास और फंड वैल्यू को बढ़ाने के लिए फंड में होने वाले मुनाफ़े को उसकी अंतर्निहित सिक्योरिटीज़ में पुनः निवेश करता है। ग्रोथ प्लान की NAV ज़्यादा होती है क्योंकि सिक्योरिटीज़ से होने वाले मुनाफ़े को वापस स्कीम में निवेश कर दिया जाता है और चक्रवृद्धि ब्याज अपना कमाल दिखाता है।
डिविडेंड प्लान फंड में होने वाले मुनाफ़े को, समय-समय पर फंड मैनेजर के निर्णय के अनुसार, डिविडेंड आय के रूप में वितरित किया जाता है। डिविडेंड पेआउट, हालांकि इसकी गॅरंटी नहीं होती, आपकी आय को बढ़ाने में मदद कर सकता है। डिविडेंड प्लान में, अगर निवेशक डिविडेंड रीइन्वेस्ट (पुनः निवेश) का ऑप्शन चुनता है तो उसे फंड के ज़्यादा यूनिट्स मिलते हैं जबकि अगर वह डिविडेंड पेआउट ऑप्शन का चुनाव करता है तो उसे आय का अतिरिक्त स्रोत प्राप्त होता है।
1 अप्रैल 2020 के बाद, निवेशकों को मिलने वाले डिविडेंड पर टैक्स वसूला जाएगा। अब निवेशक को म्यूचुअल फंड्स से डिविडेंड आय पर अपनी उच्चतम आयकर वर्ग के मुताबिक टैक्स देना होगा।
जबकि आप डिविडेंड ऑप्शन के मामले में अतिरिक्त टैक्स भार को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, एक ऑप्शन के मुकाबले दूसरे ऑप्शन को चुनने का फैसला प्राथमिक रूप से आपके वित्तीय लक्ष्यों/आवश्यकताओं से प्रेरित होना चाहिए।