हम जब लम्बी दूरी के सफ़र पर निकलते हैं, किसी पुल पर या मार्ग के प्रवेश पर टोल पर एक निश्चित रकम का भुगतान करना परता है, कभी निकलते वक़्त भी| बहुधा, टोल कंपनियों को एक निश्चित अवधि तक ही शुल्क लागू करने का अधिकार होता है जब तक निर्माण लागत की वसूली नहीं हो जाती है| उस अवधि के पश्चात टोल कंपनी को यात्रियों से शुल्क वसूलने की अनुमति नहीं है|
म्यूच्यूअल फंड में निवेश भी कुछ मूल्य भार के अधीन आते हैं, हालांकि ये टोल पर दिए जाने वाले मूल्य से, जो उदाहरण स्वरुप आपने पढ़े, अलहदा हैं| वर्ष २००९ तक, म्यूच्यूअल फंड में प्रवेश पर एक मूल्य लागू हुआ करता था, जो अब अस्तिव में नहीं है| कुछ स्कीमें, कुछ शर्तों के तहत, बाहर निकलने पर मूल्य लागू करती हैं जिसे ‘निकासी भार’/एग्जिट लोड कहते हैं|
ज़्यादातर परिस्थितियों में, निकासी भार लागू अगर होता भी है तो निकासी की एक समय सीमा निर्धारित होती है, अगर आप उससे अधिक की अवधि तक निवेशित रहते हैं, फिर आप पर कोई निकासी भार लागू नहीं होता| दूसरे शब्दों में गर कहें, बहुधा, ये निकासी भार निवेशक को स्कीम से निकलने से हतोत्साहित करता है| ‘निकासी भार’ पर भी, SEBI, जो म्यूच्यूअल फंड का नियामक प्राधिकारी है, ने अधिकतम निकासी भार की सीमा निर्धारित की हुई है, जो म्यूच्यूअल फंड स्कीम द्वारा लागू की जा सकती है|