डेट फंड्स फिक्स्ड इन्कम प्रतिभूतियों, जैसे कॉर्पोरेट या सरकारी बॉन्ड्स और मुद्रा बाज़ार के साधन में निवेश करते हैं। ये प्रतिभूतियाँ ब्याज उत्पन्न करने वाले साधन हैं जो नियमित अंतरालों पर निवेशकों को एक नियत(फिक्स्ड) ब्याज (कूपन दर) और मैच्योरिटी पर निवेश की गई राशि (मूलधन) का भुगतान करते हैं। इन प्रतिभूतियों की कीमतें, ब्याज दरों में परिवर्तनों से सीधे तौर पर प्रभावित होती हैं। बॉन्ड की कीमतें और ब्याज दरें व्युत्क्रमानुपाती हैं।
एक बॉन्ड की कूपन दर उस समय तय की जाती है जब एक निश्चित कीमत (अंकित मूल्य) पर पहली बार वह बॉन्ड जारी किया जाता है। यदि ब्याज दरें कूपन दर से कम होती हैं, तो बॉन्ड ज़्यादा आकर्षक लगता है क्योंकि वह बाज़ार में उपलब्ध मौजूदा ब्याज से ज़्यादा ब्याज देता है। इसलिए, ऐसे बॉन्ड्स की माँग बढ़ जाती है, जिससे उनकी कीमतें बढ़ती हैं। यदि ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो ये बॉन्ड्स अनाकर्षक लगते हैं और माँग में कमी की वजह से उनकी कीमतें कम हो जाती हैं।
जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो फिक्स्ड इन्कम प्रतिभूतियों की कीमतें कम होती हैं। इसकी वजह से उन डेट फंड्स की NAV घटती है जिनके पोर्टफोलियो में ये प्रतिभूतियाँ होती हैं। दूसरी ओर, जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो फिक्स्ड इन्कम प्रतिभूतियों की कीमतें बढ़ती हैं, जिसके कारण डेट फंड्स की NAV बढ़ती है। इसलिए, जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो आपको डेट फंड्स में निवेश से सकारात्मक रिटर्न मिलता है और दूसरी स्थिति में इसके विपरीत होता है।