पिछले दो दशकों में खासकर महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता के बारे में बहुत कुछ लिखा और बोला गया है। लेकिन महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता का क्या मतलब है? यह बहुत ही व्यक्तिपरक (सब्जेक्टिव) मामला है और अलग-अलग महिलाओं के लिए इसका अलग-अलग मतलब हो सकता है। एक कामकाजी महिला के लिए, इसका मतलब शायद यह हो सकता है कि वह अपने आर्थिक निर्णय खुद ले सकती है या अपने खर्चे खुद उठा सकती है। एक गृहिणी के लिए, इसका मतलब यह हो सकता है कि वह जब चाहे पैसा खर्च कर सकती है या इमर्जेंसी के दौरान अपने खर्चे खुद उठा सकती है।
बुनियादी स्तर पर, आर्थिक आत्मनिर्भरता महिलाएं को उनके सामाजिक-आर्थिक बैकग्राउन्ड के बावजूद ज़्यादा सुरक्षित और सम्मानित महसूस कराती हैं। इसका न केवल महिलाओं पर बल्कि उनके परिवार, समाज और देश पर अपनेआप बड़े पैमाने पर असर पड़ता है। ज़्यादा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाओं का मतलब ज़्यादा प्रगतिशील समाज जो स्वस्थ, सुरक्षित और कम पक्षपाती होता है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाएं अपने बच्चों के लिए आदर्श/रोल मॉडल बन जाती हैं और सदियों पुराने लिंग के आधार पर लड़के और लड़कियों के बीच रहे भेदभावों को दूर करने में मदद करती हैं, जो हमारी संस्कृति में गहरी पैठ जमाए हुए हैं। आर्थिक आत्मनिर्भरता महिलाओं को इतने संघर्षों से गुज़रने के बाद जल्दी रिटायरमेंट लेकर ज़िंदगी का मज़ा लेने में भी मदद करती है।
अगर महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भरता इतनी महत्वपूर्ण है, तो परिवार, समाज और सरकार के कदम उठाने से पहले ही महिलाएं खुद इसे कैसे पा सकती हैं? आसान जवाब है आर्थिक सामर्थ्य और शैक्षिक बैकग्राउन्ड के बावजूद किसी महिला का अनुशासित निवेशक बनना। चाहे आर्थिक सामर्थ्य और शैक्षिक बैकग्राउन्ड कुछ भी हो, जब तक किसी की कमाई का एक हिस्सा बचाया और समय के साथ सही तरीके से सही जगह पर समझदारी से निवेश नहीं किया जाता है, तो वह आपात स्थिति से निपटने के लिए कभी तैयार नहीं रहेगा/रहेगी जैसे नौकरी का छूट जाना, मेडिकल खर्च या किसी कमाऊ परिवार के सदस्य की क्षति।
आजकल, महिलाएं कई तरह की भूमिकाओं में काम कर रही हैं, फिर भी सभी कामकाजी महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हैं। जब निवेश करने की बात आती है तो ज़्यादातर कामकाजी महिलाएं अभी भी परिवार के पुरुष-सदस्य पर निर्भर हैं। साथ ही, हो सकता है कि वे पर्याप्त बचत ना कर रही हों या अगर वे बचत कर भी रही हों, तो शायद इतनी ही की वह मुश्किल से महँगाई को मात दे पाए। यहां महिलाएं म्यूचुअल फंड पर भरोसा करना सीख सकती हैं जो सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) द्वारा लंबी अवधि के लिए निवेश करने का अनुशासित तरीका पेश करते हैं। अगर किसी महिला की बहुत कम या बिल्कुल कमाई नहीं है, तब भी वह अपनी बचत में से 500 रुपये मासिक SIP शुरू करने के लिए अलग रख सकती है जो उसे आर्थिक आत्मनिर्भरता के करीब लाने में मदद करती है। इसलिए यह ज़रूरी है कि हर महिला यह जाने कि म्युचुअल फंड में निवेश करना आसान और साध्य है।