इक्विटी फंड्स कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं जबकि डेट फंड्स कंपनियों के बॉन्ड्स और मनी मार्केट इन्स्ट्रुमेंट्स (मुद्रा बाज़ार के साधनों) में निवेश करते हैं। चूँकि ये फंड्स हमारी रकम को अलग-अलग एसेट्स में निवेश करते हैं, वे अंतर्निहित एसेट क्लासेज़ (परिसंपत्ति वर्गों) पर असर करने वाले जोखिमों के कारकों से प्रभावित होते हैं।
बाज़ार में उतार-चढ़ाव से शेयर प्रभावित होते हैं। इसलिए बाज़ार का जोखिम इक्विटी फंड्स को प्रभावित करने वाला एकमात्र सबसे बड़ा जोखिम का कारक है। अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी फंड्स भी एक्सचेंज रेट (विनिमय दर) में उतार-चढ़ाव की वजह से मुद्रा के जोखिम का सामना करते हैं। इक्विटी फंड्स को आर्थिक और औद्योगिक जोखिम ज़्यादा पेश आते हैं क्योंकि किसी कंपनी के कारोबार और आर्थिक परिवेश पर असर करने वाले कारकों से शेयर सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं।
ब्याज दरों में बदलाव से बॉन्ड्स प्रभावित होते हैं क्योंकि बॉन्ड्स एक प्रकार से पूँजी उधार देने का साधन होते हैं। इसलिए, ब्याज का जोखिम डेट फंड्स को प्रभावित करने वाला एकमात्र सबसे बड़ा जोखिम का कारक है। बॉन्ड्स डिफ़ॉल्ट (भुगतान न करने) और क्रेडिट डाउनग्रेड्स के जोखिम का सामना भी करते हैं यानि बॉन्ड जारीकर्ता द्वारा बॉन्ड के तहत भुगतान करने में असफल रहने या किसी ऐसे वित्तीय संकट में फंसने की संभावना जो उसे बॉन्ड के तहत भुगतान करने में असमर्थ बना सकता है। इसलिए डेट फंड्स डिफ़ॉल्ट और क्रेडिट (ऋण) के बड़े जोखिम का सामना करते हैं।
दोनों प्रकार के फंड्स नकदी के जोखिम का सामना करते हैं यानि अगर उस सिक्योरिटी में कम कारोबार होता है या उसकी मांग कम रहती है तो फंड मैनेजर को पोर्टफोलियो में से कुछ होल्डिंग्स बेचने में मुश्किल हो सकती है।