आपने अपने दोस्त को उसके स्टार्ट-अप के लिये 5 लाख रुपए 8% ब्याज पर उधार दिये हैं (7% के वर्तमान बैंक दर से अधिक). हालांकि, आप उसे सालों से जानते हैं लेकिन फिर भी आपने जोखिम लिया है कि शायद वो आपका पैसा समय पर नहीं लौटाए या वापस ही न दे पाये। इसके अलावा, बैंक दर बढ़कर 8.5% हो सकता है जबकि आप तो 8% पर ही अटके हुये हैं।
इसी तरह, डेट फंड्स आपके पैसे को ब्याज देने वाली सिक्योरिटीज (प्रतिभूतियों) में निवेश करते हैं जैसे कि बॉन्ड्स और मनी मार्केट इन्स्ट्रुमेंट में। ये सिक्योरिटीज इन फंड्स से नियमित ब्याज भुगतान करने का वादा करते हैं। जिस प्रकार आप अपने दोस्तों को पैसे उधार देकर जोखिम से ग्रस्त होते हैं, ठीक वैसे ही फिक्स्ड इनकम फंड भी तीन मुख्य जोखिम से ग्रस्त होता है।
· पहला, चूंकि ये फंड ब्याज देने वाली सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं, अतः इनकी एनएवी में बदलती ब्याज दरों के साथ उतार-चढ़ाव होता है (ब्याज दर का जोखिम)। जब ब्याज दर बढ़ती है तो इन फंड्स की कीमतें गिरती हैं और ब्याज दर कम होने पर कीमतें बढ़ती हैं।
· दूसरा, ये फंड्स क्रेडिट जोखिम के अधीन होतेहैं, अर्थात उन अंतर्निहित सिक्योरिटीज (उदाहरण के तौर पर, बॉन्ड्स) से नियमित भुगतान प्राप्त नहीं होने का जोखिम जिनमें उन्होंने निवेश किया है ।
· सबसे खराब स्थिति में, इन फंड्स को डिफ़ॉल्ट जोखिम का सामना करना पड़ सकता है जहां बॉन्ड जारीकर्ता वादा किया गया भुगतान करने में असफल रहता है। जब फिक्स्ड इनकम फंड के अंतर्निहित पोर्टफोलियो में बॉन्ड एक भुगतान करने में चूक जाता है (डिफ़ॉल्ट हो जाता है), तो इससे फंड की ब्याज आय के घटक पर असर पड़ता है जिससे फंड से प्राप्त होने वाले आपके कुल रिटर्न पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।