जिस तरह रिस्क के आधार पर हमारे पास म्यूचुअल फंड की अलग-अलग स्कीम्स होती हैं, ठीक उसी तरह की श्रेणियों(कैटेगरीज) में निवेशकों को उनकी रिस्क प्रोफाइल के आधार पर रखा जाता है। निवेशकों को दो फैक्टर्स(कारणों) के आधार पर अग्रेसिव, मॉडरेट और कंज़र्वेटिव रिस्क प्रोफाइल में क्लासिफाई(वर्गीकृत) किया जा सकता है। किसी निवेशक की रिस्क प्रोफाइल उसके/उसकी रिस्क लेने की क्षमता (रिस्क कैपेसिटी) और रिस्क लेने की इच्छाशक्ति (रिस्क अवर्श़न) पर निर्भर करती है। अगर किसी निवेशक में रिस्क लेने की क्षमता और इच्छाशक्ति कम है, तो उसे कंज़र्वेटिव निवेशक कहा जाता है, जिसे कम रिस्क(जोखिम) वाले निवेश प्रोडक्ट्स में निवेश करना चाहिए जैसे डेट फंड, बैंक एफडी।
अगर किसी निवेशक में रिस्क लेने की क्षमता और इच्छाशक्ति ज़्यादा है, तो ऐसे निवेशक को अग्रेसिव रिस्क केटेगरी वाले प्रोडक्ट्स में निवेश करने की सलाह दी जाती है जैसे इक्विटी म्यूचुअल फंड, डायरेक्ट इक्विटी। लेकिन, अगर किसी निवेशक में रिस्क लेने की इच्छाशक्ति ज़्यादा है, पर रिस्क लेने की क्षमता कम है या फिर इसके विपरीत है तो, ऐसे निवेशक को मॉडरेट रिस्क वाले प्रोडक्ट्स में निवेश करने की सलाह दी जाती है। इन निवेशकों को मॉडरेट निवेशक कहा जाता है जो मॉडरेट रिस्क लेना पसंद करते हैं ताकि उन्हें किसी मुश्किल का सामना ना करना पड़े। उन्हें बैलेंस्ड म्यूचुअल फंड में निवेश करना पसंद है।
वेश(इन्वेस्टमेंट) को निवेशक के लिए उपयुक्त माना जाता है अगर निवेश(इन्वेस्टमेंट) का रिस्क निवेशक की रिस्क कैपेसिटी और रिस्क अवर्श़न की सीमा के अंदर आता है।